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रस (Sentiments)-

काव्य के पड़ने अथवा नाटक के देखने से पाठक अथवा दर्शक को जो उल्लास होता है उसे रस कहते हैं ।
स्थायी भाव, संचारी भाव, विभाव और अनुभाव के योग से रस की निष्पत्ति होती है।

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरा पति सोई||

हिंदी मैं रसों की संख्या ९ मानी गयी है।
१- श्रृंगार
२-वीर
३-अद्भुत
४-रौद्र
५-करून
६-भयानक
७-हास्य
८- वीभत्स
९- शांत
कुछ विद्वान भक्ति और वात्सल्य को भी रस मानते हैं।

१-श्रृंगार रस - श्रृंगार रस मैं नायक और नायिका के प्रेम का उल्लेख होता है।
श्रृंगार रस के दो भेद होते है।
जहाँ नायक -नायिका के मिलन का उल्लेख होता है , वहां संयोग श्रृंगार और जहाँ बिछड़ने का उल्लेख होता है वहां वियोग श्रंगार होता है।
इसका स्थाई भाव रही होता है।

हे खग - मृग हे मधुकर श्रेनी
तुम देखी सीता मृगनैनी।

2-वीर रस - जब युद्ध अथवा कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना विकसित होती है उसे ही वीर रस कहते हैं |
इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, यश प्राप्त करने आदि प्रकट होती है|

बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी

3- अद्भुत रस - जहाँ किसी असाधारण अथवा अलौकिक वस्तु को निहारने से कौतुहल जाग्रत हो , वहीं अद्भुत रस की व्यंजना होती है |
इसका स्थाई भाव विस्मय है |

उस एक दिन ही अभिमन्यु से यों युद्ध जिसने किया ,
मारा गया अथवा समर से विमुख होकर ही जिया |
जिस भांति विद्द्द्दाम से होती सुशोभित घनघटा ,
सर्वत्र छिटकाने लगा वह समर मैं शस्त्र छटा|
तब कर्ण द्रोणाचार्य से साश्चर्य यों कहने लगा ,
आश्चर्य देखो तो नया यह सिंह सोते से जगा |

4- रौद्र रस - अपमान , शत्रु की अनुचित चेस्टाओ , निंदा अदि से उत्पन्न क्रोध से भावों को व्यंजना होती है , वहां रौद्र रस होता है |
इसका स्थाई भाव क्रोध है |

श्री कृष्ण के वचन सुन अर्जुन क्रोध से जलने लगे,
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे |
संसार देखो अब हमारे , शत्रु रण मैं मृत पड़े ,
करते हुए यह घोषणा वे , हो गए उठकर खड़े |

5-करूण रस - किसी अमंगल की आशंका से अथवा कोई अनहोनी होने पर जो दुःख व्यक्त होता हे उससे करूण रस की व्यंजना होती हे। इसका स्थाई भाव शोक हे।

प्रिय पति वो मेरा प्राण प्यारा कहाँ हे ?
दुःख जलनिधि मैं डूबी का सहारा कहाँ हे

6- भयानक रस- भयप्रद वस्तु को देखने या सुनने से भय रस की व्यंजना होती है | इसका स्थाई भाव भय है |

एक ओर अजगर लखि, एक ओर मृगराय
बिकल बटोही बीच ही, परयो मूर्छा खाय ||

7-हास्य रस-इसका स्थाई भाव हास होता है इसके अंतर्गत वेशभूषा, वाणी आदि कि विकृति को देखकर मन में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है उससे हास की उत्पत्ति होती है इसे ही हास्य रस कहते हैं |

कहु न लखा सो चरित्र विसेखा। सो सरूप नृप कन्या देखा |
मर्कट बदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध भा तेह।।
जेहि दिसि बैठे नारद , फूली। सो दिसि तेही न विलोकी भूली।
पुनि पुनि मुनि उकसाहि अकुलाहिं। देखी दसा हरगन मुसकाही।।

8- वीभत्स रस- घृणित वस्तुओ को देखने या सुनने से वीभत्स रस की व्यंजना होती है | इसका स्थाई भाव घृणा है |

सिर पर बैठो काग, आंख दोउ खात निकरत |
खीचत जीभाय सियार अतिहि आनंद उर धारक |
गिद्ध जांघ कह खोदि- खोदि के माँ उपारात
स्वान अँगुरिन कोटि - कोटि के खात विदरत ||"

9- शांत रस - दुनिया की नश्वरता अथवा तत्व ज्ञान, विराग आदि से उत्पन्न अलौकिक निर्वेद स्थाई भाई के परिपाक से शांत रस की व्यंजन होती है |

जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं |